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राष्ट्रीय बागवानी मिशन

इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

बीमारियों के दौरान कीवी(Kiwifruit or Chinese gooseberry) ही ऐसा फल है, रोग प्रतिरोधक काफी सुद्रढ़ बनाया है। इस फल को जानवरों से भी कोई हानि नहीं होती। कीवी की फसल के माध्यम से किसान अधिकतर वर्षों तक फायदा उठा सकते हैं। मौसम परिवर्तन की वजह से सेहत काफी दुष्प्रभावित होती है व लोग अतिशीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो चुकी है कि आज औषधियों की सहायता लिए बिना स्वास्थ्य को अच्छा और संतुलित रखना बेहद कठिन हो गया है। इसी कारण से बाजार में अब फलों की मांग में वृद्धि हो रही है। अन्य फलों की अपेक्षाकृत कीवी के फल की मांग बाजार में अत्यधिक बढ़ गयी है जो किसान और लोगों के लिए एक सही संकेत है। कीवी की मांग में बढ़ोत्तरी के मध्य इसकी बागवानी एवं कृषि व्यापार करके किसान बेहतरीन लाभ प्राप्त कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि कीवी की बागवानी करने हेतु अत्यधिक व्यय वहन नहीं करना होगा, क्योंकि राष्ट्रीय बागवानी मिशन स्कीम (National Horticulture Mission) एवं प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के तहत 10 लाख तक का अनुदान, प्रशिक्षण व कर्ज की सुविधा भी दी जाएगी। अब बात करते हैं व्यवसाय से होने वाले लाभ एवं तरीकों के बारे में।

 

कीवी के फल से क्या क्या लाभ हैं

कीवी का रंग एवं केश के प्रकार बाहरी सतह भी आकर्षण का कारण बनी हुई है। कीवी के फल में विटामिन-ई, विटामिन-के, विटामिन-सी व पोटैशियम की प्रचूर मात्रा होती है। ये पोटैशियम व फोलेट जैसे पोषक तत्वों का भी बेहतरीन स्रोत है। कीवी के फल का स्वाद खट्टा व मीठा पाया जाता है। कीवी के उपयोग के द्वारा स्वास्थ्य की रोग प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है। यह स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों से लड़ने में काफी सहायक साबित होता है। कीवी का फल विशेष रूप से होने वाले किसी भी रोगों के संक्रमण, मलेरिया व डेंगू जैसे खतरनाक रोगों से लड़ने में बेहद सहायक साबित होता है। 

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इस क्षेत्रों में कीवी आसानी से होता है

कीवी का फल मुख्य रूप से चीन में होता है, चीन के कीवी के फल को विश्वभर में अलग ही ख्याति प्राप्त हुई है। हालाँकि, कीवी के भाव थोड़ा अधिक है , लेकिन इससे कीवी की मांग एवं खपत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मिट्टी व जलवायु के अनुरूप हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश मेघालय, उत्तराखंड, नागालैंड, केरल, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में कीवी की फसल एवं इसका प्रोसेसिंग व्यवसाय कर सकते हैं। कश्मीर से लेकर हिमाचल तक इसका प्रचार प्रसार है।

पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

अगर आप भी पपीते की खेती (papite ki kheti, papaya farming) करना चाहते हैं तो देर ना करें। आजकल व्यापक पैमाने पर पपीते की खेती की जा रही है। किसान अपने खेतों में पपीते की फसल को अधिक से अधिक लगा रहे हैं। 

इसके पीछे की वजह यह है कि यह बहुत ही कम समय में अधिक मुनाफा देने वाला फसल है। आज के इस दौर में एक साइड बिजनेस की तरह उभर रहा है।

बेहतर मुनाफे के लिए रखना होगा इन चीजों का ध्यान

अन्य फसलों के मुकाबले पपीते ( पपीता (papaya), वैज्ञानिक नाम : कॅरिका पपया ( carica papaya ) ) को उगाना आसान है, क्योंकि इस फसल को बहुत कम रखरखाव की जरूरत होती है और साथ में कम पानी की भी आवश्यकता होती है। 

एक बार जब फसल अच्छी तरह से उपज जाता है तो आपको यह बेहतर मुनाफा दे जाता है। पपीते की खेती से आप औसतन तीन लाख तक का मुनाफा 1 एकड़ जमीन से कमा सकते हैं। यह मुनाफा 5 लाख प्रति एकड़ तक भी जा सकता है। इसके लिए आपको सही समय में सही मौसम में पपीते को खेत में लगाना सुनिश्चित करना होगा।

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अगर आप पपीते से बेहतर मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको कुछ चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप पपीते के फसल को मार्च से मई के दौरान मार्केट में बेचना चाहते हैं तो उस समय आपको घाटे का सौदा करना पड़ेगा, क्योंकि मार्च से मई के दौरान बाजार में आम की बहुत मांग होती है 

और उस समय बाजार में अधिकतर लोग आम खरीदते हुए दिखाई देते हैं। मार्च से मई के दौरान सभी मजदूर आम तोड़ने और आम को बाजार तक पहुंचाने में व्यस्त रहते हैं। अगर आपको उस वक्त मजदूर मिलते भी हैं तो आपको अधिक भुगतान करना पड़ेगा और आपको बेहतर मुनाफा भी बाजार में नहीं मिल पाएगा। 

इसलिए यह जरूरी है कि सही समय में सही मौसम में बाजार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए पपीते की खेती को करना चाहिए, क्योंकि इसे सभी लोग नहीं खरीदते या छोटे-छोटे समूहों के द्वारा खरीदा जाता है। पपीता पोषक तत्वों से भरा बहुत ही लोकप्रिय फल है। अ

गर आप पपीते की खेती करना चाहते हैं तो इसे आप पूरे साल कर सकते हैं। यह दुनिया भर में लोकप्रिय है क्योंकि यह त्वरित रिटर्न देता है।

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अगर ऐसे करेंगे खेती तो मिलेगा खूब लाभ

पपीते की खेती से बेहतर लाभ पाने के लिए आपको अपनी उपज का समय निर्धारित करना होगा। साथ में आपको यह ध्यान रखना होगा कि आप किस प्रकार के बीज को बो रहे हैं। आप बीज को अनेक स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। 

अगर आप बेहतर क्वालिटी की बीज लेना चाहते हैं तो आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से खरीदें। अमूमन भारत के सभी राज्यों में पपीते की खेती की जाती है। कुछ ऐसे राज्य हैं जहां मौसम पपीते के अनुकूल होने के कारण पपीता वहां बहुत तेजी से बढ़ता है। 

पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है। इसे इसमें बहुत ज्यादा पानी की खपत नहीं है। अगर ज्यादा पानी पपीते की जड़ के पास दिख जाए तो पपीता का बर्बाद होना सुनिश्चित हो जाता है। 

मुख्य रूप से पपीता उगाने वाले राज्य केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और अन्य राज्य हैं। इन सभी राज्यों में अलग-अलग किस्म की पपीते की प्रजाति पाई जाती है। पपीते की खेती के लिए तापमान कम से कम 12 डिग्री होना अनिवार्य माना जाता है। 

अगर यह तापमान 12 डिग्री से नीचे चला जाता है तो पपीता उस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उस क्षेत्र में भी आप पपीते को नहीं उपजा सकते हैं जहां जलभराव एक चिंता का विषय बना हुआ है। 

बेहतर मुनाफा कमाने के लिए आपको उचित समय उचित मौसम के अनुसार एक्सपोर्ट की राय लेकर इसकी खेती करनी चाहिए। इससे आप बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।

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फल तैयार होने में लगता है इतना समय

पपीता कोई मौसम के अनुरूप उगाने वाला फल नहीं है। गर्मियों के दौरान पपीते की फलों की मांग ज्यादा होती है और उस वक्त इसका स्वाद भी बहुत ही लाजवाब होता है। सामान्य तौर पर पपीते के फलने का कोई मौसम नहीं होता है।

पपीते के पौधे को अंकुर लगने से लेकर फलने तक 8 से 9 महीने का समय लगता है और इसका पौधा लगभग 3 साल तक जीवित रहता है। अधिकांश पौधे की तुलना में पपीते को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।

ड्रिप सिंचाई करने के बाद प्रत्येक पौधों को लगभग 6 से 8 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। अगर आप अपने पपीते के फल को फसल को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सही उर्वरक और मिट्टी की स्थिति को जानना बेहतर होगा।

स्वास्थ्य के लिए भी है लाभप्रद

यह फाइबर, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है और यह जौंडिस जैसे बीमारी में रामबाण का काम करता हैं। एक मध्यम आकार के पपीते में लगभग 120 कैलोरी पाया जाता है और यह वजन घटाने में भी काफ़ी मददगार साबित होता है। 

इसमें चीनी की मात्रा कम होती जिसके कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए काफ़ी लाभप्रद होता है। पपीता विटामिन सी जैसे कई पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है जो तनाव से मुक्त रखने में मदद करता है।

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भारत में पहली बार 2014 में नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन यानी राष्ट्रीय बागवानी मिशन ( NHM - National Horticulture Mission ) में पपीते को शामिल किया गया था, जिसके अच्छे परिणाम सामने आये थे। 

किसानों का पपीते की खेती करने से बेहतर मुनाफे के साथ रोजगार के भी विकल्प उभर कर सामने आ रहे हैं। भारत में पपीते की खेती एक बहुत ही लाभदायक और अपेक्षाकृत सुरक्षित कृषि व्यवसाय के तर्ज पर उभर रहा है। यह एक बहुमुखी फसल है और इसकी खेती सब्जियों, फलों और लेटेक्स के लिए की जा सकती है। 

यहां तक ​​कि इसके सूखे पत्तों का बाजार में दवा बनाने के लिए भी बहुत मांग है। अगर आपने सभी बातों का ध्यान में रखते हुए और पपीते की खेती करते हैं तो जाहिर है की आप अच्छी उपज प्राप्त कर पाएंगे और अपनी आय को दोगुनी करने में सक्षम हो पाएंगे।

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार किसानों को एक बड़ी सौगात दे रही है जिसकी खूब चर्चा हो रही है। दरअसल बिहार सरकार का उद्यान विभाग मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फल और फूलों के बगीचे लगाने के लिए किसानों को 40 से 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, जिससे बिहार के किसानों के चेहरे पर खुशी झलक रही है। मौजूदा दौर में देश के कई राज्यों में किसानों के द्वारा मुख्य फसल की जगह पर तरह तरह के फल और फूलों की खेती की जा रही है।  खेती करने की मुख्य वजह फल और फूलों की घरेलू बाजार के साथ-साथ विश्व की बाजारों मे बढ़ती हुई मांग है।  किसानों को उनके द्वारा उगाए गए फूलों का उचित रेट भी मिल रहा है।  उचित मुनाफा होने के कारण किसान भी जोर–शोर से फल और फूलों की खेती कर रहे हैं।


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भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां के अधिकतर लोग कृषि के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जो अपना भरण-पोषण अपने द्वारा उपजाए गए फसलों को बाजारों में बेचकर करते हैं। मुख्य फसलों की जगह पर फल फूलों की खेती करना आज के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बनकर उभर रहा है। राज्य सरकार और भारत सरकार भी किसानों की आय में बढ़ोतरी और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीम और नए-नए तकनीक के साथ खेती करने का प्रशिक्षण दे रही है। इसी कड़ी में बिहार सरकार ने भी किसानों को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। फलों एवं फूलों की खेती करने के लिए बिहार के किसानों को उद्यान विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री मिशन योजनाओं 40 से 75 प्रतिशत का अनुदान दे रही है। सब्सिडी को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। सरकार सरकार के द्वारा फल और फूलों की खेती करने पर इस तरह से अनुदान देना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।

अभी सिर्फ इन जिले के किसानों को ही मिलेगा लाभ

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार के ट्विटर आईडी पर पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हुई है जिसमें ऑनलाइन आवेदन करने के बारे में भी बताया गया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत आच्छादित जिलों की सूची भी दी गई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले पटना, नालंदा, रोहताश, गया, औरंगाबाद, मुजफ्फर पुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मूंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, बांका और भागलपुर है। वहीं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, नावादा, सारण, सिवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, सुपौल, मधेपुरा, लखीसराय और शेखपुरा है।

जानिए किस फल पर मिल रही है कितनी सब्सिडी

उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत चयनित जिलों के किसानों को ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी उपजाने के लिए 40 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अनानास, फूल की खेती जैसे गेंदा और अन्य फूल, मसाले की खेती और सुगंधित पौधे की खेती (मेंथा) पर 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। बिहार सकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान रखा है। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन का भी गठन किया जा रहा है।


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सबसे ज्यादा यानी 75 फ़ीसदी की सब्सिडी पपीते की खेती पर दी जा रही है, जिससे कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है। लोगों में इस फल की मांग भी काफी ज्यादा रहती है। अगर आप ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्रॉबेरी, पपीता, गेंदे की फूल की खेती और सुगंधित पौधे (मेंथा) की खेती करना चाहते है और आप सरकार द्वारा चयनित जिले के निवासी हैं, तो आप http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करके योजनाओं का लाभ पा सकते हैं। अगर आप इन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क कर सकते हैं और किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर बीज प्राप्त करने कि जानकारी और नए तकनीक के साथ खेती को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।


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भारत के अनेक राज्यों में फल फूल की खेती लोग तेजी से कर रहे हैं। मुख्य तौर पर लोग अब मुनाफा अर्जित करने के लिए ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की उपज करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक वानस्पतिक फल वाला पौधा है जो आम तौर पर मानसून के दौरान या उसके बाद में फलता है। इसे आमतौर पर रोपने के 18-24 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम तक होता है। एक पेड़ में आमतौर पर लगभग 15 से 25 किलो फल लगते हैं, ये फल बाजार में 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकते हैं, लेकिन सामान्य कृषि दर लगभग रु 125 से 200 प्रति किलो। अगर आप इसकी उपज करते हैं तो आप प्रति एकड़ 5-6 टन की औसत उपज पा सकते हैं।


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भले ही बिहार में बड़े उद्योग लग नहीं पा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कृषि से जुड़े क्षेत्र में लगातार बेहतर कार्य हो रहे है। बिहार सरकार दूसरी हरित क्रांति लाने के प्रयास में जुट गयी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बिहार के बारे कहा था की बिहार में दूसरी हरित क्रांति की पूरी संभावना है और जिस तरह से बिहार कृषि के क्षेत्र बढ़ रहा है, इससे अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार होगी। बिहार को कृषि में आगे बढ़ने और औद्योगीकरण की ओर बढ़ने के लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है।


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वर्तमान में, हमारे किसान देखते हैं कि पिछले सीजन में किसी विशेष उपज के लिए उन्हें क्या कीमत मिली थी। उदाहरण के लिए, यदि सरसों से उन्हें अच्छी कीमत मिलती है, तो हर कोई उसी की खेती करना पसंद करता है।  लेकिन जिस तरह से सरकार फल फूलों को उपजाने के लिए सब्सिडी दे रही है उससे किसानों का आत्मबल मजबूत हो रहा है और साथ ही बिहार में किसानों कि हालात में भी सुधार हो रहा हैं।
जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

भारत की 45.28 लाख हेक्टेयर भूमि पर लाखों टन मसाले उत्पादित किये जा रहे हैं। मसाले के क्षेत्रफल में वृद्धि एवं कृषकों की आमंदनी को दोगुना करने हेतु बहुत सारी मसालों से संबंधित योजनाएं लागू की जा रही हैं। 

भारतीय व्यंजनों के स्वाद में चार चाँद लगाने वाले मसालों की विदेश में बहुत मांग हो रही है। वर्ष दर वर्ष मसालों के निर्यात में भी वृद्धि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय मसालों की मांग में बहुत बढ़ोत्तरी सामने आ रही है। 

बतादें, कि केंद्र एवं राज्य सरकारों की बहुत सारी योजनाएं बेहद सहायक हो रही हैं। ऐैसी योजनाओं का ही प्रभाव है, कि वर्तमान में विभिन्न मृदा एवं जलवायु में कुल 63 प्रकार के मसाले उत्पादित किये जा रहे हैं, जिनमें से 21 मसालों की व्यावसायिक कृषि की जा रही है। 

ऐैसे मसालों में इलायची (छोटी और बड़ी), धनिया, जीरा, सौंफ, मेथी, अजवाइन, सोआ बीज, जायफल, लौंग, दालचीनी, इमली, केसर, वेनिला, करी पत्ता, काली मिर्च से लेकर लाल मिर्च, पुदीना, हल्दी, लहसुन और अदरक हैं।

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फिलहाल लहसुन उत्पादन के रूप में भारत सबसे अग्रणीय तो है, ही साथ में मिर्च की पैदावार में दूसरे एवं अदरक के उत्पादन में तीसरे तथा हल्दी की पैदावार करने में चौथे स्थान पर है। भारतीय कृषि भूमि के बहुत बड़े रकबे में जीरे की खेती हो रही है।

मसालों की खेती के लिए कृषि योजनाएं

किसान आगामी समय में मसालों की कृषि करने के बारे में सोच रहे हैं, तो सरकार की ओर से प्रशिक्षण, अनुदान व उसकी बेहतरीन सुविधा दी जाती है। 

सरकार द्वारा इनमें से कुछ योजनाएं पूरे देश में जारी हैं, तो कुछ योजनाएं राज्य स्तर पर चलाई जाती हैं। इनके अंतर्गत एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) भी आते हैं। 

इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश की राज्य सरकार भी मसाला क्षेत्र विस्तार योजना चला रही है।

राष्ट्रीय बागवानी मिशन

पारंपरिक फसलों में दिनोंदिन हो रही हानि को देखते हुए किसानों को बागवानी फसलों के उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। 

मसाला भी उनमें से एक विशेष बागवानी फसल है, जिसकी कृषि से लेकर कटाई, छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग, भंडारण एवं प्रोसेसिंग हेतु भी सरकार कृषकों को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करती है। 

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के चलते मसालों की जैविक खेती करने वाले कृषकों को 50% अनुदान के साथ-साथ तकनीकी प्रशिक्षण का भी प्रावधान है। सरकार द्वारा मसाला भंडारण हेतु कोल्ड स्टोरेज निर्माण के लिए 4 करोड़ तक का अनुदान प्रदान करती है।

मसालों का प्रोसेसिंग यूनिट बनाने हेतु सरकार 40% फीसद मतलब 10 लाख रुपये तक का अनुदान प्रदान करती है।

मसालों की छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग के लिए भी किसानों को 35% फीसद अनुदान प्रदान किया जाता है, इसकी यूनिट स्थापित करने के लिए 50 लाख रुपये तक का व्यय आ सकता है। 

मसालों की पैकिंग यूनिट बनाने हेतु 15 लाख रुपये तक व्यय हो जाता है, जिसमें 40% फीसद तक अनुदान मिल सकता है।

मसालों की खेती के लिए सब्सिडी

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जरिये आवेदन करने पर समस्त नियमों, शर्तों एवं योग्यता की जाँच पड़ताल कर कृषकों को मसालों की खेती हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। 

विभिन्न क्षेत्रों में मसालों का उत्पादन करने हेतु 40% अनुदान मतलब 5,500 रुपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान प्रदान किया जाता है। अधिक जानकारी हेतु ऑफिशियल पोर्टल https://midh.gov.in/ या https://hortnet.gov.in/NHMhome पर भी जा सकते हैं। 

मसालों की अच्छी खासी पैदावार पाने हेतु कृषकों को सिंचाई हेतु अनुदान दिया जाता है। किसान चाहें तो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरिये फव्वारा एवं बूंद- बूंद सिंचाई हेतु अनुदान प्राप्त कर सकते हैं, इसके हेतु Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (pmksy.gov.in) पर आवेदन कर अनुदान का लाभ प्राप्त सकते हैं। 

साथ ही, अगर मसाले की फसल में कीट-रोग संक्रमण होता है, तो प्रबंधन हेतु 30% फीसद मतलब 1200 रुपये प्रति हेक्टेयर के अनुदान का प्रावधान है।

मसाला क्षेत्र विस्तार योजना

राज्य सरकारें मसाले की खेती व उसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए हर संभव योजनाएं चलाती हैं। मसालों के उत्पादन में वृद्धि हेतु जारी की गयी योजनाओं में से एक है, मसाला क्षेत्र विस्तार योजना। 

इस योजना के चलते मध्य प्रदेश उद्यानिकी विभाग कुछ गिने-चुने मसालों की कृषि, क्षेत्र विस्तार एवं उत्पादन बढ़ाने हेतु कृषकों की आर्थिक सहायता करता है। 

इस योजना के अंतर्गत मसालों के बीज एवं प्लास्टिक क्रेट्स खरीदने हेतु 50 से 70 फीसद तक का अनुदान देने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, जड़ या कंद वाली फसल जैसे- लहसुन, हल्दी, अदरक हेतु भी 50,000 प्रति हेक्टेयर अनुदान का प्रावधान है। 

इस योजना के अंतर्गत एक किसान को अधिकतम 0.25 हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर तक कृषि हेतु अनुदान दिया जाता है। इससे संबंधित और अधिक जानकारी हेतु https://hortnet.gov.in/NHMhome वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।

करनी है बंपर कमाई, तो बनिये बागवानी मिशन का हिस्सा

करनी है बंपर कमाई, तो बनिये बागवानी मिशन का हिस्सा

किसानों की अच्छी आय के लिए छत्तीसगढ़ सरकार काफी मेहनत कर रही है. इसके लिए तरह तरह की योजनाएं सरकार धरातल में उतार रही है. जिसके लिए सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है. ताकि उनकी आर्थिक रूप से मदद हो सके. सरकार की तरफ से किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा किसानों को बागवानी खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. हालांकि बागवानी की खेती करके किसानों को सब्सिडी भी दी जाती है. ताकि किसानों की आर्थिक मदद हो सके. बागवानी की खेती करके किसानों की अच्छी कमाई हो रही है. छत्तीसगढ़ में किसान बागवानी के जरिये अमरूद, केला, आंवला और आम जैसे फलों की खेती कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तर्ज पर राज्य सरकार कृषि के साथ साथ उद्यानिकी फसलों से जुड़े क्षेत्रों के विस्तार और उत्पादन में बढ़ोतरी करना चाहती है. बता दें इस योजना के तहत राज्य के मुंगेली जिले के अंतर्गत करीब 443 सदस्य कृषकों की तीन ने समेती लाभंडी रायपुर में प्रशिक्षण लिया है. यह प्रशिक्षण 1 फरवरी, 2 से 4 फरवरी, 6 से 8 फरवरी, 9 से 11 फरवरी, 20 से 22 फरवरी और 23 से 25 फरवरी 2023 तक चला. आपको बता दें कि, इस दौरान किसानों ने नई तकनीक से कैसे खेती करनी है, इसका गुण भी सीखा.

इस तरह मिली जानकारी

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले के किसानों ने उद्यानिकी फसलों से जुड़ी दाल और सब्जियों जैसी उन्नत तकनीक से खेती करने की जानकारी शामिल है. इसके तहत कीट प्रबंधन, बीमारियों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी, बीजों का उत्पादन, फूलों के उत्पादन तकनीक से जुड़ी सम्भावनाएं, मशरूम का उत्पादन की खेती में इस्तेमाल  होने वाले यंत्रों की भी जानकारी दी गयी. ये भी पढ़ें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी इंदिरा गांधी कृषि विश्विद्यालय के साइंटिस के अलावा विषय वस्तु से जुड़े एक्सपर्ट्स और संस्थान के अधिकारीयों ने इन सभी विषयों में टेक्निकल जानकारी किसानों को दी. यह प्रशिक्षण 14 महिलाओं और 55 पुरुषों ने 23 से 25 फरवरी के भ्रमण दौरे के दौरान लिया. इस दौरान दौरे पर आये हुए किसानों ने राज्य सरकार की इस नई तकनीक की काफी ज्यादा सरहाना की. साथ ही इस तकनीक को अपनाने की बात भी कही. इसके अलावा राज्य कृषि प्रबंधन और विस्तार प्रशिक्षण संस्थान ने किसानों को सर्टिफिकेट बांटा.
इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

बागवानी फसलों को मौसमिक प्रभाव से संरक्षित करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान राज्य के कृषकों को ग्रीन हाउस के निर्माण के व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है। आधुनिक तकनीकों द्वारा फिलहाल कृषि को बहुत गुना सुगम कर दिया है। विगत समय में किसान खेतों में मौसमिक आधार पर बागवानी फसल यानी सब्जियां-फलों का उत्पादन किया करते थे। परंतु फिलहाल ग्रीन हाउस, लो टनल एवं पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचों में गैर-मौसमी सब्जियों का उत्पादन करके सामान्य से ज्यादा पैदावार ली जा सकती है। यदि हम बात करें ग्रीनहाउस की तब इस संरक्षित ढांचे में उत्पादित की जा रही बागवानी फसलें जैसे सब्जियां-फल सर्दियों में पाले एवं गर्मियों में धूप के भयंकर ताप से सुरक्षित रहती है। इसकी सहायता से मौसमिक मार एवं कीट-रोग से उत्पन्न समस्याओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यही कारण है, कि फिलहाल सरकार भी कृषकों को ग्रीन हाउस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसी क्रम में राजस्थान के किसान भाइयों के लिए भी ग्रीन हाउस निर्मित करने हेतु अनुदान प्रदान किया जा रहा है।

किसानों के लिए कितने फीसद अनुदान प्रदान किया जा रहा है

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान के किसान भाइयों को ग्रीनहाउस के लिए किए जाने वाले निर्माण व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
  • सामान्य वर्गीय कृषकों को ग्रीन हाउस के इकाई व्यय पर 50 फीसद अनुदान दिया जाएगा।
  • लघु, सीमांत, एससी, एसटी वर्ग के किसान भाइयों को इकाई व्यय पर 20 फीसद ज्यादा मतलब 70% अनुदान प्रदान किया जाएगा।
  • इस अनुदान योजना का फायदा उठाने के लिए किसान भाइयों को न्यूनतम 4000 वर्ग मीटर का ग्रीन हाउस निर्मित करना पड़ेगा।
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जानें किन किसानों को मिल पाएगा लाभ

ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा प्रति पात्र किसान तक पहुंच पाए। इस वजह से योजना की पात्रता तय की गई है, जिसके अंतर्गत किसान के पास स्वयं की कृषि लायक भूमि का होना अति आवश्यक है। ध्यान रहे कि आवेदन करते वक्त कृषकों को स्वयं का मूल निवास प्रमाण पत्र भी लगाना होगा। किसान भाई खेत में सिंचाई संबंधित उत्तम व्यवस्था रखें। मृदा-जलवायु की जांच रिपोर्ट एवं एससी-एसटी की पहचानने हेतु जाति प्रमाण पत्र भी जोड़ना होगा।

किसान भाई योजना का लाभ लेने के लिए यहां आवेदन करें

राजस्थान राज्य में किसान भाइयों के लिए जारी ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा उठाने हेतु राज किसान ऑफिशियल पोर्टल rajkisan.rajasthan.gov.in पर आवेदन करना पड़ेगा। यदि किसान भाई चाहें तो अपने आसपास किसी जन सेवा केंद्र अथवा ई-मित्र केंद्र पर भी आवेदन कर सकते हैं। इस योजना से जुड़ी जानकारी राजस्थान सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की आधिकारिक वेबसाइट https://dipr.rajasthan.gov.in/ पर विस्तृत रूप से प्रदान की गई है। ज्यादा जानकारी हेतु किसान अपने जनपद के कृषि या बागवानी विभाग के कार्यालय में जाकर संपर्क करें।
जानें इन सरकारी योजनाओं के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा लाभ उठा सकते हैं

जानें इन सरकारी योजनाओं के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा लाभ उठा सकते हैं

प्रधानमंत्री कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सिंचाई करने हेतु सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से किसान भाइयों को अनुदान पर सोलर पंप मुहैया कराती है। भारत में किसान कृषि के साथ-साथ पशुपालन किया करते हैं। दूध उत्पाद बेचकर उनकी अच्छी आय हो सकती है। राज्य सरकारें भी पशुपालन को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं जारी की जा रही हैं। साथ ही, विभिन्न राज्यों में तो दुधारू पशु पालने के लिए सीमांत किसानों को बेहतरीन पैदावार भी दी जा रही है। इस लेख में आज हम किसान भाइयों को उन मुख्य योजनाओं के विषय में बताने जा रहे हैं। जिनकी जानकारी लेकर वह सरकारी योजनाओं का खूब फायदा ले सकते हैं।

राष्ट्रीय बागवानी मिशन

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत सरकार सब्जी की खेती, फल- फूल की खेती एवं औषधीय फसलों की खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए सरकार बंपर अनुदान दे रही है। वास्तविकता में सरकार यह मानती है, कि कम भूमि रखने वाले किसान भूमि के छोटे से हिस्से में ही सब्जी एवं फलों का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि इस मिशन के अंतर्गत किसानों को बागवानी करने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस मिशन के चलते किसान सब्सिड़ी पाने के लिए आवेदन कर ग्रीनहाउस, पॉलीहॉउस एवं लो टनल जैसे ढांचे लगा सकते हैं। जिसमें सब्जियों की पैदावार बेहतरीन होती है और जलवायु परिवर्तन का भी प्रभाव नहीं पड़ता है। ये भी देखें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

राष्ट्रीय पशुधन मिशन

राष्ट्रीय पशुधन मिशन केंद्र द्वारा जारी की गई एक योजना है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सीमांत किसानों की आय को बढ़ाना चाहती है। इसके लिए सरकार की ओर से मछली पालन, बकरी पालन, भेड़ पालन एवं गाय- भैंस पालन करने वाले किसानों की आर्थिक सहायता करी जाती है। इसके अतिरिक्त किसान भाइयों को अनुदान भी दिया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इस योजना से फायदा उठाकर अपनी कमाई में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। खबरों के अनुसार, इस राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत गांव में पोल्ट्री फॉर्म एवं गोशाला शुरू करने के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। इस योजना से जुड़ी विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए आप https://dahd.nic.in/national_livestock_miss पर जा सकते हैं।

पीएम कुसुम योजना

प्रधानमंत्री कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सिंचाई करने हेतु किसान भाइयों के हित में सोलर पंप उपलब्ध कराती है। इसके लिए केंद्र सरकार किसानों को 60 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। देश में लाखों किसानों ने इस योजना का फायदा उठाया है। अब इन किसानों को फसलों को सिंचित करने के लिए वर्षा पर आश्रित नहीं रहना पड़ रहा है। साथ ही, यह डीजल भी नहीं खरीद रहे हैं। फिलहाल, किसान सौर उर्जा के जरिए से सिंचाई कर रहे हैं। इससे किसानों को कृषि पर किए जाने वाले व्यय से राहत मिली है। विशेष बात यह है, कि सरकार अनुदान के अतिरिक्त सोलर पंप स्थापित करने के लिए समकुल व्यय का 30 प्रतिशत कर्ज भी मुहैय्या करा रही है। यदि देखा जाए तो किसान भाइयों को केवल सोलर पंप स्थापित करने में अपनी जेब से 10 फीसद ही कुल लागत का खर्च करना होगा।
राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान प्रदान करेगी। दरअसल, राज्य में किसानों को पारंपरिक फसलें जैसे कि मक्का, गेहूं और सरसों आदि की खेती से अच्छी आमदनी नहीं हो पा रही है। राजस्थान में किसान अब बागवानी और मसालों की खेती करेंगे। इसके लिए किसानों को राज्य सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी मुहैय्या कराई जाएगी। मुख्य बात यह है, कि सब्सिडी पाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है। अगर राजस्थान के किसान फल और मसालों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। इसके लिए उन्हें राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।

राजस्थान के किसानों को पारंपरिक फसलों से कोई लाभ नहीं मिला

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान देगी। दरअसल, राज्य सरकार का यह मानना है, कि प्रदेश में किसान भाइयों को गेहूं, सरसों एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से अच्छी आय नहीं हो पा रही है। अगर प्रदेश के किसान आधुनिक विधि से बागवानी और मसालों की खेती करते हैं, तो किसानों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यही कारण है, कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बागवानी और मसाले के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 23.79 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये भी पढ़े: दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

राजस्थान सरकार 7609 हेक्टेयर में फल के बगीचे तैयार कर रही है

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023-24 में 7609 हेक्टेयर भूमि में फल के बगीचे तैयार करने की योजना तैयार की है। इसके ऊपर सरकार सब्सिडी के तौर पर 22.40 करोड़ रुपये खर्च करेगी। साथ ही, मसाले के रकबे के विस्तार पर अनुदान धनराशि के रूप में 1.39 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, सीएम गहलोत द्वारा मंजूर किए गए 23.79 करोड़ रुपये में से 17.24 करोड़ रुपये की धनराशि राजस्थान कृषक कल्याण कोष में से प्रदान की जाएगी। साथ ही, 6.55 करोड़ रुपये राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से खर्च किए जाएंगे।

राजस्थान सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

मुख्य बात यह है, कि राजस्थान में सरकार पूर्व से ही मसालों की खेती पर अनुदान मुहैय्या कर रही है। साथ ही, किसानों को आधुनिक विधि से मसालों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन, इस योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा 4 हेक्टेयर एवं कम से कम 0.50 हेक्टेयर में मसालों की खेती करने वाले किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं। किसानों को 40 प्रतिशत अनुदानित धनराशि दी जाएगी। मतलब कि उन्हें प्रति हेक्टेयर 5500 रुपये अनुदान के रूप में मिलेंगे।

अनुदान का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो नजदीकी ई-मित्र केंद्र अथवा राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते समय किसान के पास खुद की खेत की जमाबंदी, आधार कार्ड, खेती योग्य जमीन, इलेक्ट्रिसिटी बिल, बैंक पासबुक की कॉपी और स्थानीय आवासीय प्रमाण पत्र होना काफी अनिवार्य है।
भारत सरकार बंजर जमीन पर अंजीर की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

भारत सरकार बंजर जमीन पर अंजीर की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

किसानों के हित में केंद्र और राज्य सरकार अपने अपने स्तर से किसानो की मदद करती रहती हैं। इसी कड़ी में भारत सरकार की तरफ से अंजीर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 50 प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान कर रही है। आप भी इसका लाभ उठा सकते हैं। भारत सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृण बनाने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है। सरकार किसान भाइयों को परंपरागत फसलों की पैदावार के साथ-साथ व्यापारिक फसलों की खेती के लिए भी प्रोत्साहित करती रहती है। इसी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा भारत में अंजीर की पैदावार को बढ़ाने के लिए इसकी खेती को महत्व दे रही है। इससे भारत में अंजीर की पैदावार तो बढ़ेगी ही इसके साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी। 

अंजीर की खेती से किसानों को कितना मुनाफा हो रहा है

अंजीर की खेती कर किसान भाई अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। बतादें, कि एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के खेत में 300 से अधिक अंजीर के पौधे लगाए जाते हैं। इस दौरान बाजार में एक किलो अंजीर का भाव 600 से 900 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। इससे किसान भाई सुगमता से साल भर में 20 से 22 लाख रुपए तक की आमदनी कर सकते हैं। 

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अंजीर की खेती करने का तरीका क्या होता है

अंजीर की खेती जुलाई एवं अगस्त माह में की जाती है। इसकी रोपाई के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसके पौधों के मध्य का फासला 15 से 20 सेंटीमीटर तक रहता है। आप इसकी देशी खाद एवं उर्वरक के उपयोग से अच्छी पैदावार कर सकते हैं। इसके पौधे को रोपाई के एक से दो हफ्ते के उपरांत सिंचाई की जरूरत पड़ती है।


 

जानें सरकार इसके लिए कितना अनुदान मुहैय्या करा रही है

केंद्र सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत किसानों का अंजीर की खेती में आने वाले खर्चे पर 50 प्रतिशत का अनुदान प्रदान कर रही है। राज्य सरकारें अपने प्रदेश की भूमि, जलवायु और मौसम के आधार पर किसानों को इसकी खेती पर 50 प्रतिशत अथवा उससे ज्यादा की धनराशि का अनुदान मुहैय्या करा रही है।

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इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार राज्य की बंजर पड़ी जमीनों को पुनः खेती के लायक बनाने का निर्णय लिया है। सरकार किसानों को बंजर पड़ी इन जमीनों पर अंजीर की खेती करने वाले किसानों को उनकी लागत का 50 फीसद से ज्यादा का अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में बंजर पड़ी भूमि का क्षेत्रफल काफी अधिक बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार का यह निर्णय खेती योग्य भूमि का रकबा बढ़ाऐगा। भारत में अंजीर की खेती कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में की जाती है।